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आज दिनांक २७ | ०२ | १४ को न्यूज चैनलों पर नौसेना प्रमुख श्री डी के जोशी के इस्तीफे की खबर निरंतर चल रही है । कारण नौसेना की पनडुब्बी “भारतीय नौसेना पोत सिन्धुरत्न” के दुर्घटनाग्रस्त होने से सम्बंधित है । न्यूज चैनलों और उनसे जुड़े बड़े-२ विशेषज्ञों का कहना है कि दोष भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय का है । तीनो सेनाओ के वर्तमान और सेवानिवृत्त अधिकारी भी सरकार को दोषी मान रहे हैं । कोई भी स्वयं आइना देखना नहीं चाह रहा है । मेरा मानना है कि सेना के अधिकारी पूर्णतया राजशाही जीवन जी रहे हैं । जो जितना बड़ा अधिकारी वो उतना ही बड़ा राजा । सेवा और सुविधाओं की किसी भी प्रकार की कमी नहीं है । महीने की तनख्वाह इतनी कि एक अन्य सरकारी कर्मचारी या कामगार पूरे वर्ष में ना कमा पाये। मेरे नज़रिये से सरकार का दोष इतना ही है कि सेना के अधिकारियों को इतनी सेवा , सुविधा और तनख्वाह दे रहे हैं ना कि पनडुब्बी के दुर्घटनाग्रस्त होने का है। श्रीमान डी के जोशी जी सेना में कई वर्ष गुजार चुके हैं। सभी सुविधाओं का भरपूर लाभ भी उठा चुके होंगे। उनके अधीनस्थ सुरक्षित रहे , सदैव उनकी सेवा में रहे और इस्तीफे के बाद भी पिछले दरवाजे से सुविधाएं आती रहे, यही कारण है इस्तीफा देने का। अन्यथा ये गाज जंजीर जैसे एक से दुसरे से बंधे उनके कनिष्ठों पर गिरती। ऐसा बलिदान सेना में आम है। मिसाल वही कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। सेना पर यह कहावत पूरी तरह से लागू होती है कि एक ईमानदार से दस बेईमानों का घर चलता है। सीमाओं पर तैनात या युद्ध (वैसे घोषित युद्ध कितने होते हैं या हुए हैं ये सभी जानते हैं) में गए गिनती के लड़ते मरते जवान बेस में बैठे अधिकारियों को पूरा अवसर देते हैं कि वे सरकार द्वारा मुहैया कराई गयी सभी सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाये जो कि वो उठाते हैं। हाल फिलहाल के वर्षों में सेना के जवानो व अधिकारियों में अंतर्द्वंद कि खबरें सभी ने सुनी,देखि व पढ़ी होंगी। पाठकों को अवगत कराना चाहूंगा कि वास्तविकता में भारतीय फ़ौज दो जातियों में बंटी है। एक अफसर और दूसरा जवान। अर्थात एक तो नामी दूसरा गुमनाम। मसलन श्री जे पी दत्ता निर्मित फ़िल्म LOC कारगिल में जब अभिषेक बच्चन एषा देओल को फोन करता है तो बताता है —-
Any idea
…ज़ारी रहेगा
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