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मीनू की कहानी….मेरी जुबानी – (भाग-२)

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भाग-१ से आगे
 
ऊँचे ख्याल रखना , हमेशा बड़ी-२ बातें करना और सभी पर बहुत जल्दी विश्वास कर लेना मीनू की अच्छी और बुरी दोनों आदतें थी | वह अपने आप को बेहद सुखी समझती थी और उसे पढने, खाने और ‘राकेश’ से “प्यार” करने से मतलब था | 
एक दिन उसकी तबियत खराब थी और उसके घर उसके एक रिश्तेदार जो मीनू के ‘जीजा’ लगते थे आये, उन्होंने बातों-२ में कहा की ‘भई लड़की बड़ी हो रही है, कोई लड़का देखा क्या?’  यह पल उसके लिए उसकी ज़िन्दगी का सबसे बुरा वक़्त था | मीनू को ये कहाँ पता था की आज तक उसने जितनी जिंदगी जी , उसमे वो बहुत खुश थी मगर अब जो जियेगी शायद एक-२ पल रो रो के बिताएगी | भगवान ने उसकी तकदीर में यही लिखा था | 
इस समय मीनू 9th क्लास में पढ़ती और ख़ास बात, उसे ये भी नहीं पता था की वो ‘राकेश’ से दूर हो जाएगी | 
स्कूल में भी उसकी एक ख़ास सहेली थी “सुषमा” | उन दोनों में कोई ऐसी बात नहीं थी जो एक दूसरे से छुपी हो |परस्पर  दोनों में ही एक ‘बचकाना’ विश्वास था |
दीपावली का समय था , शाम को मीनू, सुषमा किताब खरीदने दुकान गयी थीं | मीनू ने फ्राक पहन रखी थी | घर आते ही , उसने देखा की दो लड़के और ‘जीजा’ घर पर बैठे थे | उसने उनको ध्यान से देखा भी नहीं और अन्दर चली गयी | थोड़ी देर बाद उसकी मम्मी ने कहा , ‘बेटा सबको चाय दे दो’ | मीनू ने चाय देने के साथ ही उन लोगो को सिर्फ एक बार देखा और अपनी सहेली सुषमा के घर चली गयी |
फिर थोड़े दिनों बाद उसे पता  चला की जो लड़का आया था उससे उसकी शादी तय कर दी गयी है | जब उसने अपनी सहेलियों को यह बात बताई तो उन्होंने कहा पागल हो जो अभी शादी कर रही हो , ‘मीनू तेरी पढाई का क्या होगा?’ | यही प्रश्न जब उसने अपनी माँ से किया तो उसकी माँ ने कहा की तुम्हारे ससुराल वालों ने कहा है की शादी के बाद  तुम पढाई पूरी कर सकती हो | इसे ‘आश्वासन’ कहें या बेटी का माँ पर विश्वास जो मीनू इतनी बड़ी ‘कुर्बानी’ देने को तैयार हो गयी | माह अप्रैल में  मीनू का ‘तिलक’ था , उस दिन वो अपने माँ, बाप,भाई और बहन के साथ थी पर उसे कहाँ कहाँ पता था की बस कुछ दिन के लिए ही  वो लोग उसके अपने हैं | ‘लड़की’ की त्रासदी है की उसके अपने ही माँ,बाप,भाई,बहन ‘शादी’ के बाद “रिश्तेदार” बन जाते हैं , गौर कीजियेगा | मीनू के साथ भी ऐसा ही हुआ | साथी सहेलियां सब उससे छूटने वाले थे
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शेष अगले भाग में…  

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